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इस फसल के लिए बनायी गयी योजना से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

इस फसल के लिए बनायी गयी योजना से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

भारतीय कॉफी बोर्ड (Coffee Board) द्वारा कॉफी हेतु बेंगलुरु हेडक्वार्टर में भूनना व पेषण की व्यवस्था आरंभ की है। लगभग ६ वैरायटियों का विपणन व प्रमोशन हेतु भी बड़ी ई-कॉमर्स तक पहुंचने की भी तैयारी है। केंद्र सरकार के अनुसार आने वाले कॉफी बोर्ड द्वारा अब भारतीय कॉफी को देश-विदेश में प्रख्यात बनाने हेतु ई-कॉमर्स से जुड़ने का निर्णय लिया है। भारतीय कॉफी की मुख्य ६ वैरायटी समेत कूर्ग व चिक्कमंगलुरु की जीआई टैग कॉफी (GI Tag Coffee) के उत्पाद अब एमाजॉन, फ्लिपकार्ट तथा मीशो पर प्रचारित करके विक्रय होंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक कॉफी बोर्ड के अधिकारियों का मुख्य उद्देश्य किसानों की आमंदनी वृध्दि पर है, जिसके हेतु कॉफी को ऑनलाइन मंच पर प्रचारित करके सीधा ग्राहक तक पहुंचाया जाएगा।

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कॉफी को ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भी बेचा जायेगा

इस सन्दर्भ में कॉफी के वित्त निदेशक एनएन नरेंद्र का कहना है, कि वह बाजार में शुद्ध व बेहतरीन कॉफी हेतु स्थान स्थापित करना चाहते हैं। यही कारण है, कि कॉफी बोर्ड फिलहाल बागान से कॉफी लेकर प्रसंस्करण व पैकिंग कर रहा है। वर्तमान में कॉफी के इन उत्पादों को ई -कॉमर्स वेबसाइटों से ऑनलाइन विक्रय पर ध्यान ज्यादा देने का प्रयास व नियोजन किया जा रहा है। हमारा उद्देश्य इस कॉफी का प्रचार-प्रसार करना है, ना कि मुनाफा अर्जित करना है। कॉफी बोर्ड द्वारा स्वयं परिचालन के खर्च को वहन करने हेतु न्यूनतम अतिरिक्त राशि रखी गयी है, निश्चित तौर पर इस पहल से भारत के कॉफी क्षेत्र का विकास-विस्तार बढ़ेगा।

FSSAI ने प्रमाणित भी किया है

भारतीय कॉफी का प्रसंस्करण कर बाजार में उतारने हेतु बैंगलुरु हेडक्वार्टर में भूनना व पेषण की सुविधा भी प्रारंभ की गई है। यहां सीधे ऑर्डर करने पर कॉफी तैयार करके उसका विपणन किया जाता है। गुणवत्ता नियंत्रण हेतु कॉफी बोर्ड का विभाग खुद कॉफी की असाधारण मात्रा की जाँच करता है। बता दें, कि कॉफी ऑफ इंडिया ब्रांड को FSSAI से प्रमाणीकरण मिल चुका है, जो कि उम्दा गुणवत्ता के फूड का मानक है। बेहतर गुणवत्ता की कॉफी को बाजार में स्थानांतरित हेतु विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध (जीआईटैग) कॉफी को सीधे कॉफी उत्पादकों से खरीदा जाएगा। जिसकी सहायता से किसानों को होगी अच्छी कमाई साथ ही कॉफी के लिए मिलेगा अच्छा बाजार।
किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

दरअसल, लद्दाख में 30 से भी ज्यादा प्रजाति की खुबानी का उत्पादन किया जाता हैं, परंतु रक्तसे कारपो खुबानी स्वयं के बेहतरीन गुण जैसे मीठा स्वाद, रंग एवं सफेद बीज के कारण काफी प्रसिद्ध है। कारपो खुबानी को 20 वर्ष उपरांत 2022 में जीआई टैग हाँसिल हुआ है। बतादें, कि लद्दाख की ठंडी पहाड़ी, जहां जन-जीवन बेहद चुनौतीपूर्ण माना जाता है। रक्तसे कारपो खुबानी इसी क्षेत्र में उत्पादित होने वाली फसल को भौगोलिक संकेत मतलब कि जीआई टैग प्राप्त हुआ है। यह खुबानी लद्दाख का प्रथम जीआई टैग उत्पाद है, इसके उत्पादन को फिलहाल कारगिल में 'एक जिला-एक उत्पाद' के तहत बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी मध्य बहुत सारे लोगों को यह जिज्ञासा है, कि लद्दाख में उत्पादित होने वाली इस रक्तसे कारपो खुबानी की किन विशेषताओं की वजह से, इसको सरकार द्वारा जीआई टैग प्रदान किया गया है। आपको जानकारी देदें कि रक्तसे कारपो खुबानी फल एवं मेवे की श्रेणी में दर्ज हो गया है, क्योंकि रक्तसे कारपो खुबानी अन्य किस्मों की तरह नहीं होता इसके बीज सफेद रंग के होते हैं।

रक्तसे कारपो खुबानी की क्या विशेषताएं हैं

विशेषज्ञों का कहना है, कि लद्दाख की भूमि पर उत्पादित की जाने वाली खुबानी रक्तसे कारपो की सबसे अलग विशेषता इसके सफेद रंग के बीज हैं, जो कि पूर्ण रूप से प्राकृतिक है। किसी भी क्षेत्र के खुबानी में विशेष बात यह है, कि खुबानी की ये प्रजाति सफेद रंग के बीजयुक्त फलों के मुकाबले अधिक सोर्बिटोल है। जिसे उपभोक्ता ताजा उपभोग करने हेतु सर्वाधिक उपयोग में लेते हैं। लद्दाख में उत्पादित की जाने वाले 9 फलों में रक्तसे कारपो खुबानी का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। क्योंकि लद्दाख की मृदा एवं जलवायु इस फल के उत्पादन हेतु अनुकूल है। यहां के खुबानी फल की मिठास एवं रंग सबसे भिन्न होता है।
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लद्दाख में होता है, सबसे ज्यादा खुबानी उत्पादन

देश में लद्दाख के खुबानी को सर्वाधिक उत्पादक का खिताब हाँसिल हुआ है। लद्दाख में प्रति वर्ष 15,789 टन ​​खुबानी का उत्पादन होता है, जो कि देश में कुल खुबानी उत्पादन का 62 प्रतिशत भाग है। वर्ष 2021 में लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने से पूर्व स्थायी कृषक थोक में खुबानी का विक्रय करते थे। बाजार में इसका समुचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता था। परंतु अब खुबानी को अन्य देशों में भी भेजा जाता है, इस वजह से यहां के कृषकों को बेहद लाभ प्राप्त हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है, कि लद्दाख की खुबानी को तैयार होने में कुछ वक्त लगता है। यहां जुलाई से सिंतबर के मध्य खुबानी की कटाई कर पैदावार ले सकते हैं।

खुबानी से होने वाले लाभ

खुबानी एक फल के साथ-साथ ड्राई फ्रूट के रूप में भी उपयोग किया जाता है। यदि हम इसके लाभ की बात करते हैं, तो लद्दाख खुबानी में विटामिन-ए,बी,सी एवं विटामिन-ई सहित कॉपर, फॉस्फोरस, पोटेशियम, मैग्नीशियम आदि भी विघमान होते हैं। साथ ही, खुबानी में फाइबर की भी प्रचूर मात्रा उपलब्ध होती है। यदि हम खुबानी का प्रतिदिन उपभोग करते हैं, तो आंखों की समस्या, डायबिटीज एवं कैंसर जैसे खतरनाक व गंभीर रोगों का प्रभाव कम होता है। साथ ही, समयानुसार उपयोग की वजह से कॉलेस्ट्रोल भी काफी हद तक नियंत्रण में रहता है। खुबानी को आहार में शम्मिलित करने से हम त्वचा संबंधित परेशानियों से भी निजात पा सकते हैं। खुबानी का प्रतिदिन उपभोग करने से शरीर में आयरन की मात्रा में कमी आ जाती है, एवं खून को बढ़ाने में सहायक साबित होती है।
एपीडा (APEDA) की योजना से भारतीय देसी सब्जी, फल और अनाज का बढ़ेगा निर्यात

एपीडा (APEDA) की योजना से भारतीय देसी सब्जी, फल और अनाज का बढ़ेगा निर्यात

घाटियों एवं नदियों में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों को चिन्हित किया जा रहा है। ताकि नदी के नाम से ब्रांड वैल्यू (Brand Value) निर्मित की जाए। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कृषि उत्पादों को पहचान दिलाने में खास मदद मिलेगी। विगत कुछ वर्षों के अंतर्गत भारत के कृषि उत्पादों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति हांसिल की है। भारत के अनाजों, फल, सब्जी इत्यादि खाद्य उत्पादों की विदेशों में काफी मांग है। इनकी ब्रांड वैल्यू (Brand Value) विकसित करने के लिए एपीडा (APEDA) ने भी एक प्रमुख भूमिका निभाई है। दरअसल, यह एपीडा (APEDA) की ही एक सफल कोशिश है, कि वर्तमान भारत के कृषि उत्पादों का विश्वभर में एक सम्मान और विश्वास बढ़ गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने में एपीडा (APEDA) का योगदान काफी सराहनीय है। वर्तमान में भारतीय कृषि उत्पादों की ब्रांड वैल्यू विकसित करने हेतु कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद और निर्यात विकास प्राधिकरण मतलब कि एपीडा (APEDA) द्वारा एक नई योजना निर्मित की गई है। जिसके अंतर्गत भारतीय नदियों की घाटियों में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों की नदियों के नाम से ही ब्रांडिंग (Branding) की जानी है।

भारतीय कृषि उत्पादों को नदियों के नाम पर बेचा जाएगा

व्यावसायिक पथ की रिपोर्ट के अनुसार, गोदावरी, गंगा, ब्रह्मपुत्र और कावेरी सहित भारत की प्रमुख नदियों के घाटी में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का चयन किया जा रहा है। एपीडा के अध्यक्ष एम अंगमुथु का कहना है, कि हमारे समीप एक से बढ़के एक कृषि एवं खाद्य उत्पादों की श्रंखला है। इनमें से कई सारे कृषि उत्पादों द्वारा स्थानीय एवं राज्य स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है। कुछ कृषि उत्पादों को जीआई टैग (GI tag) भी मिला है। इस रणनीति को आगे बढ़ाते हुए एपीडा एक शानदार एग्री प्रोडक्ट्स का बाजार विकसित करने जा रहा है, जिनकी ब्रांडिंग नदियों के नाम पर की जाएगी। इस प्लान के तहत भारतीय नदियों का नाम या टैग लाइन इस्तेमाल करके इन कृषि उत्पादों को बेचने की योजना है।
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भारतीय रेस्टोरेंट बनेंगे एपीडा (APEDA) का सहारा

मीडिया खबरों के अनुसार, भारतीय कृषि उत्पादों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इनकी उपलब्धता एवं उपभोग में भी वृद्धि हेतु एपीडा वर्तमान में विदेश में उपलब्ध भारतीय रेस्टोरेंट पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसी सन्दर्भ में एपीडा के अध्यक्ष एम अंगमुथु का कहना है, कि भारत के जीआई टैग उत्पादों को विदेशी भूमि पर अधिक तबज्जो मिल रही है। दुनियाभर के बाजार में ऐसे उत्पादों को बेहतर प्रतिक्रिया प्राप्त हो रही है। इसी कड़ी में विगत वर्ष हमने 101 से अधिक जीआई टैग उत्पादों को विदेशों में निर्यात किया है। कृषि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हेतु फिलहाल एपीडा विदेश में उपस्थित भारतीय रेस्त्रां के समन्वय से योजना तैयार कर रहा है। इसके पीछे की वजह भारत के कृषि उत्पादों की मांग की वृद्धि में इनकी अहम भूमिका होती है। आपको बतादें, कि दूसरे देशों में लगभग 1.5 से अधिक भारतीय रेंस्त्रा हैं।
जल्द ही पूरी तरह से खत्म हो सकता है महोबा का देशावरी पान

जल्द ही पूरी तरह से खत्म हो सकता है महोबा का देशावरी पान

भारत में पान बहुतायत से उपयोग किया जाता है, जिसकी मांग को पूरा करने के लिए भारत के कई राज्यों में पान की खेती की जाती है। लेकिन पिछले कुछ समय से देखा गया है कि पान के किसान बाजार में घटती हुई मांग और मौसम की मार के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। जिसके कारण पान किसानों का पान की खेती की तरफ से रुझान कम होता जा रहा है और पान की बहुत सारी किस्में बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। इसी तरह की पान की एक किस्म है देशावरी। यह किस्म मुख्यतः उत्तर प्रदेश के महोबा में उगाई जाती है। अन्य किस्मों की की तरह यह किस्म भी मौसम के प्रतिकूल प्रभाव और खेती की बढ़ती लागत एक कारण विलुप्त होने की कगार पर है। महोबा के पान की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि पान की खेती के लिए एक निश्चित तपमान और मौसम की जरूरत होती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से भीषण शीतलहर और गर्मी के कारण यह फसल बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।

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अत्यधिक गर्मी से खराब हो रहे हैं आलू और प्याज, तो अपनाएं ये तरीके आज महोबा में पिछले 1000 सालों से ज्यादा समय से पान की खेती हो रही है। जिसके कारण इस क्षेत्र को अलग पहचान मिली है। पान की खेती चंदेल राजवंश के दौर में सबसे ज्यादा की जाती थी। अगर अब वर्तमान के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2000 से लेकर साल 2022 तक महोबा में पान की खेती में  95 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। इस दौरान पान की खेती करने वाले लगभग 75 प्रतिशत किशानों ने यह खेती करना छोड़ दी है। इसका कारण किसान पान की खेती में बढ़ती हुई लागत को जिम्मेदार बताते हैं। किसान बाताते हैं कि अब बरेजा (पान की खेती के लिए बनाए गए अस्थायी ढांचे) बनाने की कीमत बहुत बढ़ गई है। पान के बरेजा में इस्तेमाल होने वाला बांस, बल्ली, तार, घास, सनौवा आदि की कीमतें पिछले कुछ सालों में अप्रत्याशित रूप से बढ़ी हैं। इनकी कीमतें चार से पांच गुना तक बढ़ गई हैं। जो किसानों को इस खेती को करने के लिए  हतोत्साहित करता है। देशावरी पान के विशिष्ट गुणों के कारण ही पिछले दिनों भारत सरकार ने पान की इस किस्म को जीआई (ज्योग्राफिकल इंडीकेशन) टैग दिया था। यह पान विलक्षण गुणों वाला है और अपने करारेपन और स्वाद के लिए लोगों के बीच हमेशा लोकप्रिय रहा है। इसकी विशेषता है कि यह पान मुंह में डालते ही पूरी तरह घुल जाता है। यह गुण इस किस्म के पान के अलावा अन्य किस्म के पान में नहीं पाया जाता है। किसान बताते हैं कि जीआई टैग मिलने के बावजूद पान की इस किस्म की खेती में कोई सुधार नहीं हुआ है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने देशावरी पान का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी सहायता की घोषणा की थी, लेकिन उन घोषणाओं का अभी तक धरातल पर उतारा जाना बाकी है। पान के किसानों ने बताया है कि यह एक जोखिम भरी खेती है। जिसमें किसानों को फायदा के साथ ही बड़ा घाटा लगने की पूरी संभावनाएं बनी रहती हैं। इस साल ज्यादा ठंड पड़ने के कारण कई किसानों की फसल चौपट हो गई जिसके कारण किसानों को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है। महोबा में पान की खेती पर नजर रखने वाले सरकारी अधिकारियों ने बताया है कि इस साल पान की लगभग 80 प्रतिशत खेती चौपट हो गई है। सरकारी अधिकारी बताते हैं कि प्रतिकूल मौसम में पान की खेती करना अब चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। उन्होंने बताया कि पान की खेती कृत्रिम और संतुलित जलवायु में की जाती है जहां खेती के लिए गर्मियों में 45 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा सर्दियों में 6 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। लेकिन इस बार सर्दियों में तापमान माइनस 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, जिसके कारण फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

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किसानों का कहना है कि इस घाटे से उबारने के लिए पान का मूल्यवर्धन जरूरी हो गया है। लेकिन सरकार इस ओर अभी ध्यान नहीं दे रही है। चूंकि यह 12 महीने की फसल है, जो  जनवरी से लेकर दिसम्बर का उगाई जाती है। इस कारण से सरकार ने अभी तक इस फसल को किसी भी योजना में शामिल नहीं किया है। हालांकि सरकार ने पान का बरेजा लगाने के लिए किसानों को सीधे सरकारी मदद देना शुरू कर दी है। किसानों का कहना है कि पान की मांग गुटखा के चलन के बाद बुरी तरह से प्रभावित हुई है, क्योंकि बड़ी संख्या में पान खाने वाले लोग गुटखा की तरफ शिफ्ट कर गए हैं। पान के तेल की बाजार में भारी मांग है और यह बेहद महंगा भी बिकता है। अगर आज के भाव की बात करें तो बाजार में पान के तेल की कीमत एक लाख रुपये प्रति किलो है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं, पान कैंडी, पान कंद, पान आइसक्रीम के अलावा कई मिठाइयों में होता है। इस तरह के वैकल्पिक रास्ते खोजकर किसान भाई पान की खेती से भी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।
रीवा के सुंदरजा आम को मिला GI टैग, जो अपनी मिठास के लिए है विश्व प्रसिद्ध

रीवा के सुंदरजा आम को मिला GI टैग, जो अपनी मिठास के लिए है विश्व प्रसिद्ध

बतादें, कि मध्य प्रदेश के रीवा जनपद में सुंदरजा आम स्वयं की मिठास के लिए मशहूर है। सुंदरजा स्वाद के दीवाने पूरी दुनिया में हैं। रीवा जनपद में मौजूद गोविंदगढ़ के सुंदरवन में सुंदरजा आम का काफी बड़ा बगीचा है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आम व चावल का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर है। मध्य प्रदेश के रीवा जनपद के सुंदरजा आम को जीआई टैग प्राप्त हुआ है। अब सुंदरजा आम को एक अलग प्रसिद्धी मिल गई है। इससे बाजार में इसकी मांग बढ़ जाएगी एवं किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी। इसी प्रकार मुरैना की गजक समेत छत्तीसगढ़ के नगरी दुबराज चावल को भी जीआई टैग प्राप्त हुआ है। अब ऐसी स्थिति में किसानों को बाजार में बेहतर भाव हांसिल होने की आशा बढ़ गई है।

जीआई टैग GI tag किसको कहते हैं

किसान तक के अनुसार, जीआई टैग का पूर्ण नाम जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर है। इसको हिन्दी में भौगोलिक संकेत भी कहा जाता हैं। वास्तविकता में भारत में हर क्षेत्र में विभिन्न चीजों का उत्पादन किया जाता है। कुछ जनपद तो भारत में अपने उत्पाद के लिए प्रसिद्ध हैं। उस उत्पाद की वजह से ही उस जनपद की पहचान है। अब ऐसी स्थिति में उसे प्रमाणित करने की जो प्रक्रिया होती है उसे ही जीआई टैग कहा जाता है। ये भी पढ़े: किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग उदाहरण के तौर पर आपको बतादें, कि मुजफ्फरपुर की शाही लीची पूरी दुनिया में प्रशिद्ध है। शाही लीची से ही मुजफ्फरपुर की पहचान होती है। इस लीची की खेती केवल यहीं पर होती है। साल 2018 में इसको भी जीआई टैग प्राप्त हुआ था। इसी प्रकार बिहार के मिथिला क्षेत्र में मखाने का उत्पादन होता है। यहां का मखाना दुनिया भर में मशहूर है। विगत वर्ष मखाने को भी जीआई टैग प्राप्त हुआ था। अब शाही लीची एवं मखाने की बिक्री पूरी दुनिया में जीआई टैग के साथ की जा रही है।

सुंदरजा आम सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है

मध्य प्रदेश के रीवा जनपद में सुंदरजा आम अपनी मिठास के लिए मशहूर है। इसके स्वाद के दीवाने पूरे विश्व में हैं। रीवा जिला में मौजूद गोविंदगढ़ के सुंदरवन में सुंदरजा आम का बहुत बड़ा बगीचा है। विशेषज्ञों के बताने के मुताबिक, सुंदर वन की वजह से ही इसका नाम सुंदरजा पड़ा। इस आम की विशेषता यह है, कि इसके अंदर रेसा नहीं होता है। देखने में भी यह अत्यंत आकर्षक लगता है। साथ ही, यह सेहत के लिए बेहद लाभकारी है। इतना ही नहीं इसका सेवन करने से शारीरिक उर्जा भी बढ़ती है। ये भी पढ़े: मल्लिका आम की विशेषताएं (Mallika Mango Information in Hindi)

कितने दिन में इसकी फसल पककर तैयार होती है

हालाँकि, पूरे भारत में गजक मिलती है। परंतु, मुरैना की गजक स्वाद के संबंध में अपने आप में खास होती है। इसकी डिमांड और बिक्री पूरे भारत में की जाती है। इसी के चलते पूरे मुरैना में गजक निर्मित की जाती है। बतादें कि मुरैना में लगभग एक हजार से ज्यादा छोटी- बड़ी गजक की दुकानें हैं। वर्तमान में जीआई टैग मिलने के उपरांत मुरैना की गजक एक ब्रांड बन गई है। इससे यहां के स्थानीय लोगों की आय में इजाफा हो सकता है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के धमतरी जनपद के नगरी दूबराज धान अपने आप में अलहदा है। इसकी सुगंध बाकी धानों से इसको भिन्न करती है। बाजार में इसका चावल काफी महंगा बिकता है। लोग इसका बड़े स्वाद से सेवन करते हैं। इसकी फसल 130 से 140 दिन के समयांतराल में तैयार हो जाती है।
मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम के बाद अब कांगड़ा चाय को मिला GI टैग

मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम के बाद अब कांगड़ा चाय को मिला GI टैग

चाय की मांग देश के साथ साथ विदेशों तक हो रही है। भारत के हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय विदेशों तक प्रसिद्ध हो गई है। कांगड़ा चाय को यूरोपीय संघ के जरिए जीआई (GI) टैग हांसिल हुआ है। अब इसकी वजह से यूरोपीय संघ देशों में कांगड़ा चाय को अच्छी खासी प्रसिद्धि मिली है। आजकल केवल राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय उत्पाद अपना परचम लहरा रहे हैं। देश के संतरा, चावल, आम, सेब और गेंहू के अतिरिक्त बहुत सी अन्य फल सब्जियों को विदेशी पटल पर पसंद किया जाता है। दार्जिलिंग की चाय भी बेहद मशहूर होती है। फिलहाल, हिमाचल प्रदेश की चाय ने विदेशों में भी अपनी अदा दिखा रही है। कांगड़ा की चाय अपनी एक पहचान बना रही है। बतादें कि हिमाचल की कांगड़ा चाय को विदेश से जीआई (GI) टैग मिला है। इससे किसानों की आमदनी को बढ़ाने में सहायता मिलेगी। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि हिमाचल की कौन सी चाय को जीआई टैग मिला है.

मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम के बाद अब कांगड़ा चाय को मिला जीआई टैग

हाल ही में मुरैना की गजक एवं
रीवा के सुंदरजा आम को जीआई टैग मिल गया है। फिलहाल, विदेश से हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय को जीआई टैग मिला है। यूरोपीय संघ के स्तर से कांगड़ा चाय को जीआई टैग दिया गया है। इसका यह लाभ हुआ है, कि कांगड़ा की चाय को भारत के अतिरिक्त विदेश मेें भी अच्छी पहचान स्थापित करने मेें सहायता मिलेगी। विदेशों तक इसकी मांग बढ़ने से इसकी खपत भी ज्यादा होगी। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि हो जाएगी।

हिमाचल की कांगड़ा चाय को किस वर्ष में मिला इंडियन जीआई टैग

आपको बतादें कि असम और दार्जलिंग में बहुत बड़े पैमाने पर चाय का उत्पादन किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में भी बड़े इलाके में चाय की खेती की जाती है। हिमाचल में चाय की खेती ने वर्ष 1999 में काफी तेजी से रफ्तार पकड़ी थी। बढ़ते उत्पादन को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2005 में इसको भारतीय जीआई टैग प्राप्त हुआ है। बतादें, कि चाय की खेती समुद्री तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर की जाती है।

इसमें भरपूर मात्रा पोषक तत्व पाए जाते हैं

हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय में पोषक तत्वों की प्रचूर मात्रा पाई जाती है। बतादें, कि इसकी पत्तियों में लगभग 3 प्रतिशत कैफीन, अमीनो एसिड और 13 फीसद कैटेचिन मौजूद रहती है। जो कि मस्तिष्क को आराम पहुँचाने का कार्य करती है। खबरों के अनुसार, कांगड़ा घाटी में ऊलोंग, काली और सफेद चाय का उत्पादन किया जाता है। धौलाधार पर्वत श्रृंखला में बहुत से जगहों पर भी कांगड़ा चाय उगाई जाती है। ये भी पढ़े: किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

जीआई टैग का क्या मतलब होता है

किसी भी राज्य में यदि कोई उत्पाद अपनी अनूठी विशेषता की वजह से देश और दुनिया में अपना परचम लहराने लगे तब भारत सरकार अथवा विदेशी सरकारों द्वारा उसको प्रमाणित किया जाता है। बतादें कि इसको प्रमाणित करने के कार्य को जीआई टैग मतलब कि जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर के नाम से बुलाया जाता है।
बनारस के अब तक 22 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, अब बनारसी पान भी इसमें शामिल हो गया है

बनारस के अब तक 22 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, अब बनारसी पान भी इसमें शामिल हो गया है

आज तक उत्तर प्रदेश के समकुल 45 उत्पादों को जीआई टैग हांसिल हो चुका है। इन के अंतर्गत 22 उत्पाद बनारस जनपद के ही हैं। बतादें, कि जीआई टैग प्राप्त होने से बनारस के लोगों के साथ- साथ किसान भी काफी प्रसन्न हैं। अपने मीठे स्वाद के लिए विश्व प्रसिद्ध बनारसी पान को जीआई टैग मिल गया है। विशेष बात यह है कि इसके अतिरिक्त लंगड़ा आम को भी जीआई टैग प्रदान किया गया है। विशेष बात यह है कि जीआई टैग प्राप्त होने से किसी भी उत्पाद की ब्रांडिंग बढ़ जाती है। साथ ही किसी खास क्षेत्र से उसकी पहचान भी जुड़ जाती है। जानकारी के अनुसार अब तक उत्तर प्रदेश के समकुल 45 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है, जिनमें से 22 उत्पाद एकमात्र बनारस के ही हैं। वहीं जीआई टैग मिलने से बनारस की आम जनता और किसानों में भी खुशी की लहर दौड़ रही है। जानकारी के अनुसार, बनारस में उत्पादित किए जाने वाले बैंगन की एक विशेष किस्म ‘भंता’ को भी जीआई टैग प्राप्त हो चुका है। यह भी पढ़ें : किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

बनारसी पान को मिला जीआई टैग

वाराणसी के प्रसिद्ध बनारसी पान को भौगोलिक संकेत टैग मिल गया है। यह टैग प्रदर्शित करता है, कि किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान के उत्पादों में कुछ ऐसे गुण विघमान होते हैं, जो उस मूल की वजह होते हैं। अपने बेहतरीन स्वाद के लिए प्रसिद्ध बनारसी पान विशेष सामग्री का उपयोग करके अनोखे ढंग से बनाया जाता है। पद्म पुरस्कार से सम्मानित जीआई विशेषज्ञ रजनीकांत ने बताया है, कि बनारसी पान समेत वाराणसी के तीन अतिरिक्त उत्पादों रामनगर भांटा (बैंगन), बनारसी लंगड़ा आम और आदमचीनी चावल को भी जीआई टैग मिल चुका है। बनारसी पान को जीआई टैग प्राप्त होने के उपरांत काशी इलाका फिलहाल 22 जीआई टैग उत्पादों का दावा करता है। नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) उत्तर प्रदेश की सहायता से, कोविड चरण के समय 20 राज्य-आधारित उत्पादों के लिए जीआई आवेदन दायर किए गए थे। इनमें से 11 उत्पाद, जिनमें सात ओडीओपी एवं काशी क्षेत्र के चार उत्पाद शम्मिलित हैं। इनको नाबार्ड एवं योगी आदित्यनाथ सरकार की सहायता से इस वर्ष जीआई टैग प्राप्त हो चुका है। यह भी पढ़ें : जल्द ही पूरी तरह से खत्म हो सकता है महोबा का देशावरी पान

बाकी नौ उत्पाद भी सम्मिलित किए जाऐंगे

रजनीकांत का कहना है, कि पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के जीआई उत्पादों को निर्मित करने में कारीगरों समेत समकुल 20 लाख लोग शम्मिलित होते हैं, जिनमें वाराणसी के लोग भी सम्मिलित हैं। इन उत्पादों का वार्षिक कारोबार 25,500 करोड़ रुपये आंका गया है। उन्होंने यह आशा भी जताई कि अगले माह के अंत तक बाकी नौ उत्पादों को भी देश की बौद्धिक संपदा में शामिल कर लिया जाएगा। इनमें बनारस लाल भरवा मिर्च, लाल पेड़ा, चिरईगांव गूसबेरी, तिरंगी बर्फी, बनारसी ठंडाई आदि शम्मिलित हैं।

बनारस के कौन-कौन से उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग

इससे पूर्व, काशी एवं पूर्वांचल इलाके में 18 जीआई उत्पाद मौजूद थे। इनमें बनारस वुड काविर्ंग, मिजार्पुर पीतल के बर्तन, मऊ की साड़ी, बनारस ब्रोकेड और साड़ी, हस्तनिर्मित भदोही कालीन, मिजार्पुर हस्तनिर्मित कालीन, बनारस मेटल रेपोसी क्राफ्ट, वाराणसी गुलाबी मीनाकारी, वाराणसी लकड़ी के लाख के बर्तन और खिलौने, निजामाबाद काली पत्री, बनारस ग्लास शामिल थे. बीड्स, वाराणसी सॉफ्टस्टोन जाली वर्क, गाजीपुर वॉल हैंगिंग, चुनार सैंडस्टोन, चुनार ग्लेज पटारी, गोरखपुर टेराकोटा क्राफ्ट, बनारस जरदोजी और बनारस हैंड ब्लॉक प्रिंट आते हैं। इसके अंतर्गत 1,000 से अधिक किसानों का पंजीयन किया जाएगा। साथ ही, जीआई अधिकृत उपयोगकर्ता प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। नाबार्ड के एजीएम अनुज कुमार सिंह का कहना है, कि आने वाले समय में नाबार्ड इन जीआई उत्पादों को और आगे बढ़ाने हेतु विभिन्न प्रकार की योजनाएं चालू करने जा रहा है। उनका कहना है, कि वित्तीय संस्थान उत्पादन एवं विपणन हेतु सहयोग प्रदान किया जाएगा।
यूपी के इस जिले की हींग को मिला जीआई टैग किसानों में दौड़ी खुशी की लहर

यूपी के इस जिले की हींग को मिला जीआई टैग किसानों में दौड़ी खुशी की लहर

भारतीय मसालों का स्वाद देश ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। भारत के विभिन्न प्रकार के मसालों को विदेश में भी अत्यंत पसंद किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय मसालों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं की एक अनोखी पहचान स्थापित की हुई है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हींग जिसको हम सभी अपने भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं। हींग को हम भारतीय व्यंजनों में स्वाद को बढ़ाने के लिए उपयोग करने वाला सर्वोत्तम मसाला भी मानते हैं। अपने अनोखे स्वाद और गुणवत्ता की वजह से हींग को वर्तमान में केवल भारतीय मसालों में ही सम्मिलित नहीं किया गया है, इसने विदेशी बाजार के अंदर भी अपनी एक हटकर पहचान स्थापित की है। बतादें, कि उत्तर प्रदेश के एक जिला एक उत्पाद में शम्मिलित हाथरस की हींग को भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग प्रदान किया गया है। इसके उपरांत से ही देश-दुनिया के बाजारों में भारतीय हींग की मांग में काफी वृद्धि देखने को मिली है।

रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे

मीड़िया द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुरूप, विश्व स्तर पर हींग को पहचान हाँसिल होने के उपरांत यह अंदाजा लगाया जा रहा है, कि भारत के बहुत से युवाओं के लिए रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे। साथ-साथ लोगों की आर्थिक परिस्तिथियों में भी सुधार देखने को मिलेगा। बतादें, कि उत्तर प्रदेश की हाथरस हींग को जीआई टैग प्राप्त होने के उपरांत भारतीय व्यापारियों को विदेशों में अपने व्यवसाय को विस्तृत करने में काफी सुगमता रहेगी। अगर हम नजर ड़ालें तो विदेशों में केवल हींग ही नहीं हाथरस की नमकीन, रंग, गुलाल एवं गारमेंट्स आदि भी काफी प्रसिद्ध हैं। यह भी पढ़ें: जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

जीआई टैग होता क्या है

जीआई टैग का पूरा नाम जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग होता है, यह किसी स्थान विशेष की पहचान होता है। सामान्यतः जीआई टैग किसी भी स्थान विशेष के उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान प्रदान करता है। रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट-1999 के अंतर्गत भारतीय संसद में जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स जारी किया गया था। यह किसी प्रदेश को किसी विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में मिलने वाली वस्तुओं हेतु विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। ऐसी परिस्थितियों में उस विशेष इलाके के अतिरिक्त उस उत्पाद की पैदावार नहीं की जा सकती है।

जी आई टैग की आवेदन प्रक्रिया

जीआई टैग के लिए कंट्रोलर जनरल ऑफ पेरेंट्स, डिजाइंस एंड ट्रेड मार्क्स के कार्यालय में आवेदन किया जा सकता है। चेन्नई में इसका मुख्य कार्यालय मौजूद है। यह संस्था आवेदन के पश्चात इस बात की जाँच पड़ताल करती है, कि यह बात कितनी ठीक है। इसके उपरांत ही जीआई टैग प्रदान किया जाता है।
जर्दालु आम की इस बार बेहतरीन पैदावार होनी की संभावना है

जर्दालु आम की इस बार बेहतरीन पैदावार होनी की संभावना है

जर्दालु आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने बताया है, कि प्रत्येक वर्ष तुड़ाई करने के उपरांत ट्रेन से जर्दालु आम को दिल्ली रवाना किया जाता है। साथ ही, विगत वर्ष इंग्लैंड एवं बहरीन समेत बहुत सारे देशों में इसका निर्यात किया गया था। संपूर्ण भारत में विभिन्न प्रजाति के आम की खेती की जाती है। कहीं का मालदा आम प्रसिद्ध है, तो कहीं का दशहरी आम अपने स्वाद के लिए जाना जाता है। परंतु, भागलपुर में उत्पादित किए जाने वाले जर्दालु आम की बात ही कुछ और है। इसका नाम कानों में पड़ते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। इसके चाहने वाले लोग स्पेशल ऑर्डर देके इसे खाने के लिए मंगवाते हैं। जर्दालु के चाहने वाले प्रति वर्ष बेसब्री से इस भागलुपरी आम के पकने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। इस बार जर्दालु आम के चाहने वाले लोगों का इंतजार शीघ्र ही समाप्त होने वाला है। क्योंकि अगले माह से जर्दालु आम का विक्रय शुरू होने वाली है।

भागलपुर में जर्दालु आम का बेहतरीन उत्पादन होता है

किसान तक की खबरों के अनुसार, मई माह के आखिरी सप्ताह से जर्दालु आम की बिक्री चालू हो जाएगी। ऐसी स्थिति में जर्दालु प्रेमी इसके स्वाद का खूब लुफ्त उठा सकते हैं। जर्दालु आम का स्वाद अन्य आम की तुलना में बेहद स्वादिष्ट होता है। इसका सेवन करने से शरीर को विभिन्न प्रकार के विटामिन्स मिलते हैं। बिहार के भागलपुर जनपद में इसका बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाता है। विशेष बात यह है, कि जर्दालु आम को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ- साथ राज्यपालों को भी उपहार स्वरुप दिया जाता है। इस आम का सेवन मधुमेह के रोगी भी कर सकते हैं। यह एक प्रकार से शुगर फ्री आम होता है। यह भी पढ़ें : मिर्जा गालिब से लेकर बॉलीवुड के कई अभिनेता इस 200 साल पुराने दशहरी आम के पेड़ को देखने…

जर्दालु आम अपनी मनमोहक सुगंध की वजह से जाना जाता है

यही कारण है, कि बिहार सरकार वर्ष 2007 से भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं समस्त राज्यों के राज्यपालों व एलजी को जर्दालु आम उपहार स्वरुप भेज रही है। जर्दालु आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष अशोक चौधरी का कहना है, कि प्रत्येक वर्ष तुड़ाई करने के उपरांत ट्रेन के जरिए जर्दालु आम को दिल्ली पहुँचाया जाता है। साथ ही, विगत वर्ष इंग्लैंड एवं बहरीन समेत बहुत से देशों में इसका निर्यात किया गया था। यदि इस आम की गुणवत्ता के पर प्रकाश डालें, तो इसकी सुगंध बेहद ही मनमोहक होती है। यह खाने में भी सुपाच्य फल है।

किसानों को इस वर्ष जर्दालु आम की बेहतरीन पैदावार मिलने की उम्मीद

अशोक चौधरी का कहना है, कि इस वर्ष जर्दालु आम के बेहतरीन उत्पादन की आशा है। मई के आखिरी सप्ताह में इसकी तुड़ाई आरंभ हो जाएगी। इसके उपरांत यह बाजार में ग्राहकों के लिए मौजूद हो जाएगी। बतादें, कि साल 2017 में जर्दालु आम को जीआई टैग हांसिल हुआ था। इसके उपरांत से इसकी मांग बढ़ गई है। दरअसल, इस बार भी बेहतरीन पैदावार होने की आशा है। ऐसी स्थिति में इसका निर्यात विदेशों में भी किया जाएगा।